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मदद के एक ‘मैन्यू’ से पत्तल और मिट्टी के बर्तनों में भोजन की आइकॉन बन गई ‘ब्रज की रसोई’

  • नौकरी मांगने आए वृद्ध कुम्हार को कुल्लड़ और सकोरे की फैक्ट्री का बना दिया मालिक
  • क्राकरी हटा पत्तल और मिट्टी के बर्तन कर लिए रसोई में शामिल, शुद्धता और स्वाद ने दिखाया कमाल

आगरा: आगरा से मथुरा जाते समय हाईवे किनारे फरह में  स्टार कल्चर में एक रेस्टोरेंट राहगीरों के कौतूहल का केंद्र बना हुआ है। मगर, यहां पर खड़ी नजर आने वाली वाहनों की कतारें और अंदर वातानुकूलित हॉल में खाना खा रहे लोगों की भीड़ यहां के लिए नवागत नहीं है। ये वो लोग हैं जो यहां की शुद्धता और स्वाद के कायल हो चुके हैं। इस रूट पर जब भी आने-जाने का अवसर मिलता है तो यहां पर नाश्ता, लंच या डिनर करने के लिए जरूर रुकते हैं। इस फैमिली रेस्टोरेंट का नाम है ‘ब्रज की रसोई’ । पत्तल और मिट्टी के बर्तनों में भोजन यहां की पहचान बन चुकी है।

 स्थानीय निवासी विमल कुमार ने वर्ष 2019 में किराए की जगह पर ‘ब्रज की रसोई’ के नाम से एक ढाबा/रेस्टोरेंट की शुरुआत की थी। अपने भाइयों की सक्रिय सहभागिता, समर्पित स्टाफ की लगन, भोजन की शुद्धता ने कुछ ही दिनों में इस ढाबे को पहचान देना शुरू कर दिया। मगर, एक वाकये ने संचालक विमल कुमार की सोच ही बदल दी। विमल बताते हैं कि क़स्बा के प्रजापति दुलीचंद का ज़िम्मेदार पुत्र आगरा में एक शूज़ फेक्ट्री में सुपरवाइजर था। एक सड़क हादसे में उसकी मृत्यु हो गई। बुजुर्ग दुलीचंद के बूढ़े कंधों पर परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी आ गई। वे ‘ब्रज की रसोई’ पर नौकरी मांगने आए। उनकी अवस्था और स्थिति देख उन्हें पत्तल और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू करने की सलाह दी। इसके लिए जरूरी आर्थिक सहयोग भी किया। दुलीचंद खुशी-खुशी लौट गए और अपने काम में जुट गए। विमल बताते हैं कि दुलीचंद का परिवार ही ‘ब्रज की रसोई’ के लिए मिट्टी के बर्तन बनाकर देता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर गई है।

 उधर, ‘ब्रज की रसोई’ से क्राकरी हटवाकर पत्तल और मिट्टी के बर्तनों में खाना खिलाने का सिलसिला शुरू कर दिया। लोगों को ये तरीका बहुत पसंद आया और इससे ‘ब्रज की रसोई’ की पहचान दूर-दूर तक प्रसारित होने लगी। आसपास के प्रदेशों के विभिन्न स्थानों मथुरा आगरा आने जाने वाले लोग ‘ब्रज की रसोई’ पर जरूर आते हैं।

‘ब्रज की रसोई’ की है अपनी अनूठी पहचान

 ‘ब्रज की रसोई’ रेस्टोरेंट शुद्ध , शाकाहारी एवं स्वादिष्ट भोजन के लिए जाना जाता है। 2019 में एक किराए की बिल्डिंग से शुरू किया गया छोटा सा ढाबा ‘ब्रज की रसोई’ जून 2025 में अपनी खुद की एक सुंदर इमारत में शिफ्ट हो चुका है जो कि कॉपीराइट और ट्रेडमार्क में भी रजिस्टर्ड है। करीब 6 साल से पत्तल एवं मिट्टी के बर्तनों में भोजन परोसने के कारण अपनी संस्कृति और वातावरण के अनुरूप कार्य कर रहा है।

भूखे व्यक्ति को निःशुल्क भोजन

प्रोपराइटर विमल कुमार बताते हैं कि जरूरतमंद एवं भूखे लोगों की मदद का भाव मन में होने के कारण शुरू से ही ‘ब्रज की रसोई’ पर बताकर पैसे न होने पर किसी भी व्यक्ति को सम्मानपूर्वक भोजन की व्यवस्था है। जिसके लिए मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही यह स्लोगन लिखा हुआ है। कि “यदि किसी सज्जन के पास पैसे न हों तो वह बताकर भोजन कर सकता है”

    लावारिस शवों का दाह संस्कार

    प्रोपराइटर विमल कुमार बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से फरह थाना क्षेत्र के अंतर्गत सड़क दुर्घटना, रेलवे ट्रैक, नदी या नाले में मिलने वाले अज्ञात/ लावारिस शवों के दाह संस्कार में भी ‘ब्रज की रसोई’  प्रबंधन का आर्थिक सहयोग रहता है। शुरुआत में अपने स्थानीय कुछ मित्रों के साथ मिलकर यह पहल शुरू की थी।

भूले भटके लोगों को परिजनों तक पहुंचाना

      बकौल विमल कुमार, ‘ब्रज की रसोई’ रेस्टोरेंट हाईवे पर देर रात तक खुले रहने के कारण जब भी कोई भुला भटका दूर दराज का व्यक्ति यहां या आसपास नजर आता है तो उसे ‘ब्रज की रसोई’ पर लाकर उसके परिजनों की खोज शुरू कर दी जाती है। वर्ष 2019 से अब तक दूसरे प्रदेशों के ऐसे करीब डेढ़ दर्जन व्यक्तियों, बच्चों, बुजुर्ग आदि को उनके नाम पते पर जानकारी जुटाकर परिजनों से मिलवाने का काम किया है।

1 Comment

  1. Gajendra pradhan says:

    बहुत शानदार भईया।

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