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आईएमए आगरा के चुनाव परिणाम में अपेक्षा और उम्मीदों के स्पष्ट ‘सिम्टम्स’

  • क्लीनिक, अस्पताल, लैब के पंजीकरण से लेकर संचालन तक कई प्रशासनिक झंझटों से गुजर रहा है चिकित्सा क्षेत्र

 -मरीज और डाक्टर के बीच स्थापित नहीं हो पा रही सूझबूझ और संयम

-ब्लैक शीप की भी पहचान कर व्यवसाय को साफ सुथरा बनाए रखने की बहुत बड़ी है चुनौती

राजेश मिश्रा, आगरा: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) आगरा के चुनाव पिछले रविवार यानी 28 सितंबर को हुए। मतदान हुआ तो मतगणना और फिर परिणाम भी आने थे। मुख्य उत्सुकता अध्यक्ष पद को लेकर थी जिसमें ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. हरेंद्र गुप्ता प्रेसीडेंट इलेक्ट चुने गए। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी डॉ. योगेश सिंघल को हराया। जीत-हार के परिणाम के साथ ही मतदान में हिस्सेदारी तक एक तरह से इस चुनाव में अपेक्षा और उम्मीदों के ‘सिम्टम्स’ साफ साफ नजर आ गए।

 पिछले एक साल में चिकित्सा व्यवसाय में कई तरह के बदलाव देखने को मिले। सबसे बड़ा बदलाव तो चिकित्सा संस्थान के पंजीकरण को लेकर था। कागजी प्रक्रिया की बात करें तो तीन दर्जन से ज्यादा फारमेलिटीज करनी पड़ती हैं। अग्निशमन, बिजली सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण के साथ ही स्वास्थ्य विभाग की तमाम ऐसी बंदिशें हैं जिनके बाहर निकलना नामुमकिन नहीं तो आसान भी नहीं है। शहर के प्रसिद्ध शांतिवेद अस्पताल के बिकने की घटना के बाद जब कारणों पर कयास लगे तो पता चला कि अग्निशमन, प्रदूषण और स्वास्थ्य विभाग से बचने का उपचार व्यावहारिकता में नामुमकिन है।  चिकित्सा क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी मुश्किल आए दिन मरीज और डाक्टर के बीच बढ़ती तकरार,  हंगामा और कानूनी कार्रवाई है।

अब मतदान और मतगणना के परिणाम के आधार पर बात करें तो जनपद में आईएमए के 1722 सदस्य पंजीकृत हैं। मतदान में भाग लिया केवल 840 सदस्यों ने। यानी, आधे से ज्यादा सदस्य इस चुनाव से दूर रहे। इस दूरी के दो मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। एक तो संगठन से बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं है और दूसरा, इतनी व्यस्तता कि समय ही नहीं मिला। चुनाव के दौरान तमाम ऐसे सदस्य भी नजर नहीं आए जिनकी शहर में शौहरत है। कहने वाले कह रहे थे कि वे तो खुद ही इतने सक्षम है कि उन्हें संगठन की जरूरत ही नहीं है। हर क्षेत्र में उनकी पैंठ है।

लेकिन, जिन्होंने चुनाव में सहभागिता की, उनकी तमाम अपेक्षाएं थीं और उम्मीदें भी। परिणाम के आधार पर बात करें तो डा. हरेंद्र गुप्ता के जुझारूपन ने उन्हें 555 वोटों से प्रेसीडेंट इलेक्ट किया। आईएमए में उनके योगदान और विगत में समय-समय पर उनकी संघर्षशीलता ने मतदाताओं की उम्मीदों को बढ़ाया। आईएमए भवन का निर्माण तो एक उदाहरण है। उनके प्रतिद्वंद्वी डा. योगेश सिंघल को मात्र 280 वोट मिले। चिकित्सकगण ही बता रहे थे कि उनके अस्पताल वाले बोदला क्षेत्र के आसपास के सदस्यों ने तो समर्थन दिया लेकिन दूसरे क्षेत्रों से नहीं मिला। वे आईएमए में पदाधिकारी रह चुके हैं। सांस्कृतिक कार्यकलापों में उनकी सक्रियता बढ़ी है लेकिन, संगठन के कार्यों में उतनी नहीं। इसलिए, मतदाताओं का रुझान डा. गुप्ता की ओर ज्यादा गया। जीत-हार का अंतर दो तिहाई से ज्यादा होना इसी सोच का नतीजा माना जा रहा है।

  प्रेसीडेंट इलेक्ट डा. हरेंद्र गुप्ता कह तो रहे हैं कि शासन और प्रशासन से बेहतर सामंजस्य बनाना उनकी प्राथमिकता होगी। मरीज और डाक्टर के बीच बढ़ती गलतफहमी को दूर करने का भरसक प्रयास करेंगे। लेकिन, ये इतना आसान नजर नहीं आता। प्रशासनिक अस्पताल पंजीकरण से लेकर संचालन तक की प्रशासनिक प्रक्रिया का अनुपालन तो करना ही पड़ेगा, कागजों पर ही सही। व्यवहारिता में क्या हो रहा है, ये डा. गुप्ता से कुछ भी छिपा नहीं है।  पिछले वर्ष प्रेसीडेंट इलेक्ट डा. पंकज नगायच संभवतया इस 10 अक्टूबर को अपनी कार्यकारिणी के साथ कार्यभार संभालेंगे। डा. नगायच भी जुझारू हैं और एक साल के दौरान कई अच्छे कार्य भी किए हैं। जनजागरूकता और समाजहित में सराहनीय कदम बढ़ाए हैं।

  डा. नगायच के सामने कई चुनौतियां होंगी। कहावत है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। अन्य क्षेत्रों की तरह चिकित्सा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। बीमार होने पर आम व्यक्ति कोशिश करता है कि मेडिकल स्टोर से दवा लेकर ही सही हो जाए। लेकिन, अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आते ही उसकी बीमारी और बढ़ जाती है। ये बीमारी होती है जांच और इलाज के नाम पर महंगा खर्चा। वैसे तो बेड की संख्या के आधार पर उपचार का शुल्क निर्धारित है लेकिन, हकीकत में इसका पालन नहीं किया जाता। मनमाना पैसा वसूला जाता है। अनावश्यक जांच के नाम पर मरीज को लूटा जाता है। दवा उसी डाक्टर के क्लीनिक के पास वाली मेडिकल स्टोर या अस्पताल में मुर्गी के दड़वे जितने स्थान पर संचालित मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं, इन दवाओं की कीमत का कोई पैमाना नहीं है। पिछले  दिनों ही नकली दवाओं को लेकर हुई कार्रवाई में पता चला था कि मोनोपाली दवाओं पर मनमाना रेट प्रिंट कराया जाता है। फैक्ट्री से मरीज तक पहुंचते-पहुंचते दवा की कीमत कई सौ गुना तक हो जाती है।

पंजीकरण और नवीनीकरण प्रक्रिया की बात करें तो स्वास्थ्य विभाग दावा कर रहा है कि सैकड़ों आवेदन इसलिए निरस्त कर दिए गए क्योंकि एक-एक डाक्टर के नाम से दो या दो से अधिक अस्पताल संचालित थे। एक-एक पैथोलॉजिस्ट और रेडियोलॉजिस्ट के नाम से कई-कई पैथोलॉजी लैब और डायग्नोस्टिक सेंटर चल रहे थे। जब इनसे हर अस्पताल और सेंटर पर उपस्थित रहने के प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा गया तो हाथ खींच लिए। आखिर,कौन हैं ये लोग? क्यों कर रहे थे ऐसा?

 जैसा कि प्रेसीडेंट इलेक्ट डा. गुप्ता कह रहे हैं कि मरीज और डाक्टर के बीच की गलतफहमी दूर कराएंगे, तो डाक्टर साहब, ऐसे ब्लैकशीप को भी पहचान कर बेनकाब करना होगा। हालांकि, इसके लिए पहले अवसर मिलेगा डा. पंकज नगायच को जो अपनी कार्यकारिणी के साथ 10 अक्टूबर को कार्यभार संभालेंगे।

मेरी बात मैनपुरी के एक छोटे से गांव से आकर आगरा महानगर में एक कदम रखने का प्रयास किया। एक अनजान युवक को अपना ठौर-ठिकाना बनाने की चुनौती थी। दैनिक जागरण जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार समूह ने सेवा करने का सुअवसर प्रदान किया। 9 जुलाई 2025 को दैनिक जागरण समाचार…

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