-एक अस्पताल तो पर्सनल लोन की किस्त, टूअर कराने का भी इंतजाम करता है हेल्थ इंश्योरेंस से
– आयुष्मान और बीमित मरीज की पेरेलल फाइल बनती है कुछ अस्पतालों में
-अचानक चर्चित हुए अस्पताल को बहुत पहले ही बुरे दिनों के प्रति आगाह कर दिया था मार्केटिंग टीम ने
राजेश मिश्रा, आगरा: आगरा में 260 करोड़ के अस्पताल के बिकने की घटना ने चिकित्सा जगत में हलचल मचा दी है। इस अस्पताल के साथ ही शहर के कुछ अन्य अस्पतालों के संचालन के तौर-तरीकों पर चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं। कुछ अस्पतालों में इंश्योरेंस और आयुष्मान कार्ड की रकम हड़पने की होड़ मची है। बीमित मरीज को कंगाल करके डिस्चार्ज करने के लिए कहीं-कहीं एक ही फ्रेक्चर की तीन-तीन बार सर्जरी की जा रही हैं। मरीज या उनके तीमारदार को अस्पताल में रहते हुए इसकी भनक न लगे, इसके लिए पेरेलल फाइल तैयार की जाती है। शहर का एक अस्पताल तो हेल्थ इंश्योरेंस की रकम पर पर्सनल लोन की किस्त चुकाने और टुअर करने की व्यवस्था भी कर देता है।
शहर के एक अस्पताल के सबसे महंगे सौदे ने तरह-तरह के सवाल भी खड़े किए हैं। चिकित्सा जगत के लोग कहते हैं कि आखिर, इतने साधनसंपन्न अस्पताल को बेचने की नौबत या जरूरत क्यों आन पड़ी। अस्पताल संचालक इसके पीछे चिकित्सा सुविधाओं को विश्वस्तरीय बनाने का तर्क दे रहे हैं लेकिन, इससे जुड़े रहे लोग कुछ और ही कहानी बता रहे हैं। जानकार कहते हैं कि मार्केटिंग टीम ने तो करीब तीन वर्ष पहले ही प्रबंधन को बुरे दिन आने की आशंका जता दी थी। लेकिन, ‘तक्ष’ की ‘दक्षता’ पर अतिविश्वास करने वाले प्रबंधन ने इस आशंका को हवा में उड़ा दिया था। यहां की कैंटीन भी बहुत चर्चा में रही है। अस्पताल की चर्चा के बीच एक पुराना वीडियो भी फ्लैश बैक दिखा रहा है। उपचार का तरीका और प्रबंधन का व्यवहार भी भुक्तभोगियों को रह-रहकर याद आने लगा है। बीमित मरीज की यहां पर प्राथमिकता हमेशा से चर्चित रही है।
आगरा शहर में खंदारी क्षेत्र में तो एक मास्टर प्लान चल रहा है। यहां का एक अस्पताल हेल्थ इंश्योरेंस को हड़पने के मामले में चिकित्सा जगत में चर्चित है। जानकार कहते हैं कि ये अस्पताल बगैर बीमारी के भी इलाज कर देता है। होटलनुमा कमरे में चौबीस घंटे रुकने की अनिवार्यता की प्रक्रिया पूरी कर मरीज को उसकी बीमित रकम का हिस्सा दे दिया जाता है। फिर चाहे, मरीज इस रकम से अपने पर्सनल लोन की किस्त भरे या फिर कहीं मौजमस्ती करने चला जाए।
चिकित्सा जगत में इलाज के नाम पर हो रही लूटमार के बारे में जानकार बताते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस और आयुष्मान कार्डधारकों के साथ एक सुनियोजित साजिश की जाती है। दोनों सेवाओं के क्लेम में हड्डी के फ्रेक्चर को प्राथमिकता पर रखा जाता है। इसलिए अगर शरीर के किसी अंग पर एक फ्रेक्चर है तो उसकी तीन-तीन बार विभिन्न कारण बताकर कागजों में सर्जरी की जाती है। इसके बारे में मरीज को पता नहीं चल पाता। वो इसलिए कि उसकी आरिजिनल फाइल में तो इसका जिक्र किया ही नहीं जाता। अस्पताल में मरीज की एक पेरेलल फाइल बनाई जाती है जिसमें इलाज के नाम पर मनचाहा इलाज का हवाला दिया जाता है। डिस्चार्ज होते समय मरीज से इन कागजों पर दस्तखत करा लिया जाता है। यही तरीका, हेल्थ इंश्योरेंस के क्लेम में किया जाता है।
बीमा कंपनियां पकड़ने लगीं कारस्तानी
पिछले कई महीनों से प्राइवेट अस्पताल बीमा कंपनियों और आयुष्मान सेवा का भुगतान न मिलने की बात कर रहे हैं। दरअसल, बीमा कंपनियों ने क्लेम के सत्यापन के लिए अपने डाक्टरों के पैनल बैठा दिए हैं। ये पैनल अस्पतालों की कारस्तानी पकड़ने लगे हैं। पैनल की रिपोर्ट के आधार पर कंपनियां क्लेम को रिजेक्ट करने लगी हैं। आयुष्मान सेवा के भुगतान के लिए भी कुछ कंपनियों से सरकार का अनुबंध हैं। ये कंपनियां भी इसी तर्ज पर सतर्क हो गई हैं।
मेरी बात
मैनपुरी के एक छोटे से गांव से आकर आगरा महानगर में एक कदम रखने का प्रयास किया। एक अनजान युवक को अपना ठौर-ठिकाना बनाने की चुनौती थी। दैनिक जागरण जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार समूह ने सेवा करने का सुअवसर प्रदान किया। 9 जुलाई 2025 को दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह से सेवानिवृत्त होने तक के पत्रकारिता के सफर के दौरान कई पड़ाव पार किए, कई पायदान चढ़े। समाज के विभिन्न वर्गों की रिपोर्टिंग की। सामाजिक और मानवीय संवेदनाओं से भरे पहलू मेरी पत्रकारिता के प्रमुख आधार रहे। संप्रति में दैनिक भास्कर समूह से जुड़कर अपनी पत्रकारिता के नए दौर में प्रवेश रखा है। अब कुछ अलग करके दिखाने की तमन्ना है। हमारे आसपास ही तमाम ऐसे कार्यकलाप होते हैं जो जनहित और समाजहित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, निभा सकते हैं लेकिन स्पष्ट कहूं तो कूपमंडूकता के कारण हम यहां तक पहुंच नहीं पाते, जान नहीं पाते। हम ऐसे ही अदृश्य व्यक्तित्व और कृतत्व को आपके सामने लाने का प्रयास करेंगे।
जय हिंद












