Health

नहीं लिया सबक, एमपी और राजस्थान जैसे हादसे का इंतजार कर रहा आगरा का औषधि विभाग

-दो साल पहले कफ सिरप कैसे हुआ था जहरीला, विशेषज्ञ ने बताया

-मुंबई और विदेशों में हुई थी कई मौतें, इंडियन कंपनी ने ही बनाया था सिरप

-पिछले दिनों पकड़ा गया था नकली दवाओं का जखीरा, नमूनों की जांच रिपोर्ट का पता नहीं

-नकली दवा मामले में पांच साल में हुई कार्रवाई की जानकारी देने में ड्रग डिपार्टमेंट ने साधी चुप्पी

राजेश मिश्रा, आगरा: मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप के सेवन से कई बच्चों की मौत की घटना ने चिकित्सकों को भी चिंता में डाल दिया है। दो साल पहले भी इसी तरह की घटना मुंबई और विदेश में हुई थी। जांच-पड़ताल तो हुई लेकिन, कार्रवाई के बारे में पता नहीं। आगरा में पिछले दिनों नकली दवाओं का जखीरा पकडा गया था। प्राथमिकता पर नमूनों की जांच के दावे उच्चाधिकारियों ने किए थे लेकिन, इस मामले में भी खामोशी छा गई है। आगरा के वरिष्ठ कंसल्टेंट पीडियाट्रिक सर्जन डा. संजय कुलश्रेष्ठ तो कहते हैं कि क्या आगरा प्रशासन और ड्रग  विभाग राजस्थान और मध्यप्रदेश में कफ सिरप से हुई मौतों जैसे हादसे का इंतजार कर रहा है? ये चिंता इसलिए कि आगरा में पिछले  महीने  की कई कंपनियों की नकली दवाएं पकड़ी गई हैं। जो बड़े सिंडीकेट साबित हुआ है। जिसके तार कई प्रदेशों से जुड़ रहे हैं। आगरा में ये काम लंबे समय से हो रहा है।

 दो तीन साल पहले बॉम्बे और विदेशों में कफ सिरप पीने से कई मौतें हुई थीं। ये सिरप इंडियन कंपनी ने बनाए थे।अकेले गांबिया में ही 80 मौतें हुई थीं। इस मामले में भी जांच पड़ताल हुई, अंत में कंपनी को ‘क्लीन चिट’ दे गई। उस समय आगरा में भी कफ सिरप के 25 में से 19 नमूने फेल आए थे।उसके बाद क्या हुआ, कोई नहीं जानता। कितने पर कार्रवाई हुई? कितने जेल गए? इस भी सिरप के नमूने का खेल या खानापूर्ति शुरू हो गई है, इनकी रिपोर्ट कब आएगी, पता नहीं। डा. कुलश्रेष्ठ ने बताया कि वर्ष 2013 में जब कफ सिरप प्रकरण की जांच की गई तो पाया गया था कि कफ सिरप बहुत ही गैरजिम्मेदाराना तरीके से तैयार किया गया था। 200-300 लीटर क्षमता वाले बड़े-बड़े ड्रमों में कफ सिरप को भरा जाता था और टोंटी लगाकर शीशियों में भरा जाता था। ऐसे में डाइ इथलीन, ग्लाइकॉल जैसे सेडेटिव इफेक्ट वाले तत्व जिनकी डेंसिटी  ज्यादा होती है, ड्रम में बैठ जाते हैं। ऐसे में शीशियों में भरी गई सिरप में तत्वों का मिश्रण एकसमान नहीं हो पाया। ड्रम में नीचे रह जाने वाले तत्व जिन शीशियों में भरे गए, वही बहुत ज्यादा घातक सिद्ध हुईं। जबकि, गोलगप्पे वाला भी जब गोलगप्पा खिलाने से पहले डंडे के जरिए पूरे पानी को हिलाता है।

आरटीआइ में नहीं  दी जानकारी

बकौल डा. कुलश्रेष्ठ, मैंने आगरा के औषधि विभाग से आरटीआइ के  जरिए पूछा कि नकली दवा के मामले में पिछले पांच साल में कितनी एफआइआर हुईं, कितनों को सजा हुई? के जवाब में बताया गया कि इसकी जानकारी 5250 पन्नों में है, उसका पैसा जमा करो तब बताएंगे। हमने जब पूछा कि कितना पैसा देना है तो कोई जवाब ही नहीं दिया।

टॉक्सिक कंपाउंड को ही क्यों नहीं बैन कर देती सरकार

 डा. कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि  चलिए आज कफ सिरप था, बिक्री बंद कर दी। अब कोई एंटीबायटिक या अन्य जरूरी दवा के नकली आने पर अगर हादसे हुए तो क्या सरकार इन दवाओं को बंद कर पाएगी? सरकार को अगर बैन करना है तो  उन टॉक्सिक  और जहरीले कंपाउंड को ही  क्यों नहीं बैन कर देती जिसकी मात्रा कफ सिरप में 0.1 प्रतिशत के बजाए 48 प्रतिशत तक पाई गई। जो दवा अत्यधिक न्यूरोटॉक्सिक या नेफ्रोटॉक्सिक होगी वो  तो अपना असर दिखाएगी ही।

आठ-दस साल में नंबर आता है एक दवा की टेस्टिंग का

देश में 4- 5हजार फार्मा कंपनियां हैं जो लगभग 70 हजार तरह की दवाएं बनाती हैं। ड्रग टेस्टिंग लैब के स्ट्रक्चर का आलम ये है कि एक  दवा के टेस्टिंग का नंबर आठ से दस साल में आ पाता है। दिल्ली जैसी जगह पर तो लैब ही नहीं है,  उसके नमूने चंडीगढ़ में टेस्ट के लिए भेजे जाते  हैं।

सीमित संख्या में दिए जाए जेनेरिक दवा बिक्री के लाइसेंस

डा. कुलश्रेष्ठ ने बताया कि घटिया जेनेरिक दवाओं की रिपोर्ट को देखते हुए हमने एक जनहित याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में डाली थी इस प्रेयर के साथ कि सरकार को जेनेरिक दवाओं के लाइसेंस सलेक्टेड या सीमित संख्या में देना चाहिए। जिससे उनकी क्वालिटी कंट्रोल को आसानी से मैनेज किया जा सके।कोर्ट ने इसे स्वास्थ्य मंत्रालय को रेफर कर दिया था। जिस पर अभी तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है।

यूएस में जरा सी कमी पर रिजेक्ट हो जाती है दवा

डा. कुलश्रेष्ठ ने बताया कि बोलचाल में हम कुछ भी कहें पर हर ड्रग फार्मूला केंद्र सरकार के यहां से पास होता है और राज्य सरकार ठोंकबजाकर फैक्ट्री कीअनुमति देती है। सभी का क्वालिटी कंट्रोल एक समान होता है, ऑन रिकार्ड पर सभी कंपनी एक जैसी होती हैं। कानूनन किसी भी कंपनी को घटिया नहीं कह सकते मगर, भ्रष्टाचार के चलते क्वालिटी कंट्रोल के नाम पर खानापूरी ही की जाती है। यूएस में जरा-जरा सी कमी पर ड्रग उत्पाद रिजेक्ट हो जाते हैं, बड़ी-बड़ी भारतीय कंपनियों के उत्पाद भी रिजेक्ट हो जाते हैं। मगर अपने यहां या तो बड़ी कमियां पकड़ में ही नहीं आतीं या फिर पकड़ में आने पर मैनेज हो जाती हैं।  

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