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जहर बन गया कफ सिरप ! लिमिट और परसेंट आफ प्योरिटी टेस्ट हुआ था क्या?  

  • सिरप में फार्मेसी ग्रेंड नहीं, इंडस्ट्रियल पालीथिलीन ग्लाइकोल का प्रयोग होने की आशंका
  • 50 प्रतिशत और इससे अधिक के कमीशन के लालच में ऐसे ही जहर बनती रहेंगी जीवनरक्षक दवाएं

राजेश मिश्रा, आगरा: भारत में निर्मित कफ सिरप के सेवन से गबिया में  2022 में मौतों से पूरी दुनिया में शोर हो गया था। अब मध्य प्रदेश और राजस्थान में नामी कंपनियों के कफ सिरप के सेवन से 12 बच्चों की मौत की खबर ने सनसनी फैला दी है। प्रारंभिक जांच में सिरप में डीईजी यानी डाइएथलीन ग्लाइकोल और एथलीन ग्लाइकोल के अंधाधुंध मिश्रण की आशंका प्रतीत हुई है। अगर ये सच साबित होती है तो सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर, सिरप में इन तत्वों का मिश्रण सीमा से ज्यादा हो कैसे गया? सवाल इसलिए जायज है क्योंकि हर दवा निर्माण से पहले उसके एडीशनल तत्वों का लिमिट टेस्ट होता है, परसेंट आफ प्योरिटी सुनिश्चित की जाती है। ये दवा जहर बन गई? जानकार तो शंका जाहिर कर रहे हैं कि इस दवा का न तो लिमिट टेस्ट हुआ और न ही परसेंट प्योरिटी टेस्ट।

 दवा निर्माण की तकनीकी विधि के बारे में एसएन मेडिकल कालेज के फार्मेसी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल कुमार चौरसिया ने कुछ जानकारी दी। बताया कि दवा का मूल सॉल्वेंट होता है। ये सॉल्वेंट दो तरह का होता है। फार्मेसी ग्रेंड और इंडस्ट्रीयल ग्रेंड। फार्मेसी ग्रेंड की शुद्धता 99.99 प्रतिशत होती है जबकि इंडस्ट्रीयल ग्रेंड की शुद्धता बहुत कम। मूल सॉल्वेंट में सहायक तत्व मिलाए जाते हैं। ये सहायक तत्व ही बीमारी विशेष से राहत दिलाने की दवा का निर्माण करते हैं। सहायक तत्वों में प्रमुख रूप से आर्सेनिक, लैड, आयरन, क्लोराइड, सल्फर आदि होते हैं। इनमें आर्सेनिक सबसे ज्यादा जहरीला होता है। किसी भी दवा में आर्सेनिक की परमीशियल एसीप्टेंश 1 पीपीएम होती है। यानी 10 लाख में से मात्र एक हिस्सा। इससे ज्यादा आर्सेनिक के प्रयोग से दवा जहरीली बन जाती है। इसी तरह से अन्य सहायक तत्वों की मात्रा निर्धारित होती है। ये सभी तत्व अपने निर्धारित मात्रा में मिश्रित हैं या नहीं, इसके लिए हर तत्व का लिमिट टेस्ट होता है। इसके बाद दवा का परसेंट प्योरिटी टेस्ट होता है।  इसका मतलब ये निर्धारण करना है कि उम्र और बीमारी के स्तर के संबंधित मरीजों पर संबंधित दवा कितने प्रतिशत कारगर है। डा. चौरसिया बताते हैं कि लिमिट टेस्ट में सहायक तत्व या तत्वों की अनियमित मात्रा का पता चल जाता है। इस स्थिति में दवा जहरीली हो जाती है। परसेंट प्योरिटी टेस्ट में अगर गड़बड़ी है तो निर्धारित वर्ग से अलग हटकर किसी मरीज के दवा सेवन करने से उसे शारीरिक दिक्कत हो सकती है।

  मानव शरीर के लिए किडनी एक फिल्टर का काम करती है। दवा चाहें मुंह से निगलें या इंजेक्शन के जरिए, खून की नसों से होते हुए किडनी तक जाती है। अगर दवा में तत्वों का मिश्रण अनियमित या अंधाधुंध है तो सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित किडनी ही होती है। संदिग्ध कफ सिरप के मामले में भी यही हुआ। प्रभावित बच्चों की किडनी प्रभावित हुई, उनकी पेशाब रुक गई थी। चिकित्सा जगत के लोग आशंका जाहिर कर रहे हैं कि कफ सिरप के सेवन से जिस तरह से बच्चों की मौतें हुई हैं, उससे सिरप में  इंडस्ट्रीयल ग्रेंड के सॉल्वेंट के प्रयोग की आशंका है। इसके साथ ही सहायक तत्वों का मिश्रण भी अंधाधुंध हो सकता है। आश्चर्य इस बात का है कि लिमिट टेस्ट और परसेंट प्योरिटी टेस्ट के बावजूद ये कैसे हो गया? जाहिर है कि टेस्ट हुए ही नहीं?

70 के दशक में घटिया ग्लूकोज से हुई थी मरीजों की मौत, कानपुर की थी कंपनी

कफ सिरप से बच्चों की मौतों की खबर सुनकर चिकित्सा जगत के कुछ लोगों को मरीजों की मौत की घटना याद आ गई। बताया कि ग्लूकोज में सहायक तत्वों का मिश्रण निर्धारित से ज्यादा कर दिया था। इससे कई मरीजों की मौत हो गई थी। घटना के बाद कानपुर की इस कंपनी को बंद कर दिया गया था।  

ज्यादा कमीशन का लालच सबसे बड़ी पहचान

दवा की गुणवत्ता की पहचान आम आदमी कैसे करे, के सवाल पर दवा बाजार के लोग कहते हैं कि तकनीकी रूप से कोई जरिया नहीं है। जब तक लैब में होगी और रिपोर्ट आएगी, तब तक दवा की खेप बाजार से होते हुए मरीजों के शरीर में समा चुकी होगी। हां, तरीका है। जिस दवा पर जितना ज्यादा कमीशन का लालच, समझो वो दवा उतनी ही घटिया। अब मेडिकल स्टोर वाले 10 प्रतिशत की छूट देकर अहसान जताते हैं  लेकिन, आम लोगों को शायद विश्वास नहीं होगा कि दवा पर 50 प्रतिशत तक कमीशन बिक्री पर दिया जाता है। अस्पतालों में संचालित मेडिकल स्टोरों पर तो एमआरपी से 20-20 प्रतिशत दर पर भी दवाएं सप्लाई की जा रही हैं। सोचो, इन दवाओं की गुणवत्ता का फिर क्या भरोसा? डाक्टर ऐसी दवाओं को अपने पर्चे पर लिख ही क्यों रहे हैं?

मेरी बात मैनपुरी के एक छोटे से गांव से आकर आगरा महानगर में एक कदम रखने का प्रयास किया। एक अनजान युवक को अपना ठौर-ठिकाना बनाने की चुनौती थी। दैनिक जागरण जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार समूह ने सेवा करने का सुअवसर प्रदान किया। 9 जुलाई 2025 को दैनिक जागरण समाचार…

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