-1989 में तीन पत्रकारों ने संजोया था प्रेस क्लब का सपना, फिर सहयोग, समन्वय और सहभागिता से रखी थी ताज प्रेस क्लब की नींव
-रोज सुबह खुद लगाते थे झाड़ू, बाल्टी से पानी भरकर लाते थे पीने के लिए,
पत्रकार वार्ता के लिए बिछाते थे फर्श
-तब पद की नहीं होती थी लालसा, एमजी रोड वाला भवन छोड़ने के लिए उस समय के बहुमूल्य ऑफर्स तक ठुकराए थे
राजेश मिश्रा, आगरा: लंबे अरसे बाद शुक्रवार दोपहर को ताज प्रेस क्लब गया था। भवन के बाहर सड़क किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग्स और भवन की बाहरी दीवार से लेकर अंदर की दीवारों पर चस्पा चुनाव में विजयी बनाने की अपील के स्टिकर्स यहां की आबोहवा की गवाही दे रहे थे। शनिवार यानी 18 अक्टूबर को ताज प्रेस क्लब की कार्यकारिणी के चुनाव जो हैं। जहां-तहां जीत-हार के लिए कहीं रणनीति बनाई जा रही थी तो कहीं व्यक्तिगत संपर्क कर समर्थन मांगा जा रहा था। मगर, इस क्लब को मूर्त रूप देने वाले इस शोरगुल से कोसों दूर थे। वे ये बात सुनकर और सोचकर हैरान थे कि क्या इसी जीत-हार के लिए इस क्लब के लिए वर्षों तक पसीना बहाया था। अरे, खुशी तो तब होती जब विगत के कई कार्यकाल की तरह सर्वसम्मति से जिम्मेदारी सौंप दी जाती या स्वीकार कर ली जाती।

ताज प्रेस क्लब आज जिस रूप-स्वरूप में चमक रहा है, उसकी नींव में उतने ही सूझबूझ और संघर्ष के पत्थर लगे हैं। क्लब के संस्थापक महासचिव रहे वरिष्ठतम पत्रकार सुभाष रावत इसकी कहानी बड़े ही गर्व से बताते हैं। उन्हीं की जुबानी ज्यादा रोचक है- ये 1989 की बात है। हम, राजीव भाई (राजीव सक्सेना)और ताऊ(अशोक अग्निहोत्री) सर्किट हाउस में बैठे थे। अचानक एक प्रेस क्लब का विचार आया। जिले भर के पत्रकार साथियों से विचार विमर्श और सहयोग के बाद 1990 में ताज प्रेस क्लब का जन्म हुआ। क्लब के संस्थापक अध्यक्ष राजीव सक्सेना जी, महासचिव मैं यानी सुभाष रावत और सचिव बने अशोक अग्निहोत्री जी। क्लब के अभिलेख में पहले कार्यालय का पता लिखा गया मेरे घर यानी संगीता टाकीज के पास शाहगंज का। इसके बाद भवन की तलाश में जुट गए। तीनों साथियों के अथक प्रयास से तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा ने एमजी रोड पर भवन आवंटित कर दिया। कुछ समय बाद ही इस भवन पर मिशनरी ने अपना दावा ठोंक दिया। कई सालों की कानूनी लड़ाई के बाद हमें वो भवन खाली करना पड़ा। इसके बाद मौजूदा भवन आवंटित हुआ।
टुकड़ों में लिखा गया था क्लब का संविधान
श्री रावत बताते हैं कि क्लब का सपना संजोने के साथ ही संविधान तैयार करने में हम लोग जुट गए। कभी किसी साथी के घर तो कभी सर्किट हाउस में बैठकर संविधान की रूपरेखा तैयार करते। कई बार की प्रक्रिया के बाद आखिर संविधान को अंतिम रूप दे दिया गया। तब क्लब में पद की कोई लालसा नहीं होती थी। आपस में ही बैठकर जो जिम्मेदारी मिल गई, उसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाते थे।
हम ही पदाधिकारी और हम ही कर्मचारी
श्री रावत बताते हैं कि भवन आवंटित होने के बाद हम पत्रकार साथियों ने वहां पर नियमित बैठना शुरू कर दिया। रोज सुबह 9 बजे पहुंच जाते। खुद ही झाड़ू लगाते। बगल में डा. डीवी शर्मा के लॉन में लगे पाइप से बाल्टी में पानी भर लाते। पत्रकार वार्ता के लिए पहले से ही हम लोग फर्श बिछाकर तैयारी कर देते थे। तब फर्श पर ही बैठकर पत्रकार वार्ता हुआ करती थीं। हम लोग शाम पांच बजे तक वहां रहते, इसके बाद अपने-अपने आफिस जाकर रुटीन का कार्य निपटाते। ये सिलसिला वर्षों तक चला।
तब पत्रकार साथियों में सहयोग का अनूठा जुनून था
श्री रावत कहते हैं कि नवजात क्लब को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए पत्रकार साथियों में सहयोग का अनूठा जुनून था। सरकारी विभाग में कोई कार्य हो या जनप्रतिनिधियों से सहयोग, साथी लोग स्व:स्फूर्ति ही आगे आ जाते थे और हर कार्य संपन्न हो जाता था। हम तीनों के अलावा भी सर्वश्री विनोद भारद्वाज, एसपी सिंह, ओम ठाकुर, ओम पाराशर आदि-आदि के साथ ही तत्कालीन सभी सक्रिय पत्रकार साथी हैं जिन्होंने अपना अमूल्य सहयोग दिया।
लालच में नहीं आए
संस्थापक पदाधिकारियों में से एक वरिष्ठजन ने एक प्रसंग सुनाया। अपना नाम न लिखने के आदेश पर मैं उनका नाम नहीं लिख रहा हूं। वो बताते हैं कि एमजी रोड वाले भवन को खाली करने के लिए कई बार ऑफर आए। कभी क्लब के कार्य के लिए तो कभी व्यक्तिगत लाभ के लिए। मगर, उन्हें निरुत्तर कर दिया जाता रहा। एक बार तो लोग एक पदाधिकारी के घर पर आ गए। परिवार के एक सदस्य को नौकरी और तीनों संस्थापक पदाधिकारियों के लिए एक-एक कार का ऑफर रखा। पदाधिकारी ने उन्हें वास्तव में अपमानित कर घर से दौड़ा दिया था।
एसएसपी से दो टूक कह दिया था पत्रकारों की बात करनी है
ताज प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष विनोद भारद्वाज उस दौर का एक वाकया बताते हैं। भवन खाली कराने के लिए मिशनरीज की ओर से दबाव बनाया जा रहा था। पुलिस के इन्वाल्व होने की भनक लगी तो वे तत्कालीन एसएसपी कर्मवीर सिंह के पास गए। उनसे दो टूक कहा कि पत्रकारों का साथ देना है। पुलिस तो कतई इन्वाल्व न हो। एसएसपी ने उसी समय एक प्रशासनिक अधिकारी को ऐसा ही करने की हिदायत दे दी थी।
मेरी बात
मैनपुरी के एक छोटे से गांव से आकर आगरा महानगर में एक कदम रखने का प्रयास किया। एक अनजान युवक को अपना ठौर-ठिकाना बनाने की चुनौती थी। दैनिक जागरण जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार समूह ने सेवा करने का सुअवसर प्रदान किया। 9 जुलाई 2025 को दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह से सेवानिवृत्त होने तक के पत्रकारिता के सफर के दौरान कई पड़ाव पार किए, कई पायदान चढ़े। समाज के विभिन्न वर्गों की रिपोर्टिंग की। सामाजिक और मानवीय संवेदनाओं से भरे पहलू मेरी पत्रकारिता के प्रमुख आधार रहे। संप्रति में दैनिक भास्कर समूह से जुड़कर अपनी पत्रकारिता के नए दौर में प्रवेश रखा है। अब कुछ अलग करके दिखाने की तमन्ना है। हमारे आसपास ही तमाम ऐसे कार्यकलाप होते हैं जो जनहित और समाजहित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, निभा सकते हैं लेकिन स्पष्ट कहूं तो कूपमंडूकता के कारण हम यहां तक पहुंच नहीं पाते, जान नहीं पाते। हम ऐसे ही अदृश्य व्यक्तित्व और कृतत्व को आपके सामने लाने का प्रयास करेंगे।
जय हिंद












ये लेख जिस भाव से लिखा गया है वह सीधे रीडर तक पहुँचा है .वो दिन क्या रहे होंगे सोच कर ही रोमांच आता है . 👌💐
गजेंद्र यादव, सुनयन शर्मा आदि सभी तत्कालीन पत्रकारों के अमूल्य सहयोग से यह क्लब मूर्त रूप ले सका। उस समय नाम का सवाल नहीं था। काम काम का सवाल था। सभी पत्रकारों ने एकजुट होकर कार्य किया।