Health

इलाज में लूटमार: रिक्शा प्रैक्टिस, सिंक टेस्ट के बाद अब एंबुलेंस गैंग का बोलबाला

  • चालीस साल पहले बिजलीघर, रेलवे स्टेशनों पर डाक्टरों ने इंगेज किए थे रिक्शा वाले
  • यूरिन और स्टूल टेस्ट के सैंपल को सिंक में फिंकवा मनमाफिक रिपोर्ट बनवाते थे
  • अब शहर के कुछ अस्पतालों के सामने लगे रहते हैं एंबुलेंसों के झुंड

राजेश मिश्रा, आगरा: आगरा में मरीजों से इलाज के नाम पर अवैध वसूली का तरीका भले ही नया हो लेकिन, धंधा पुराना ही है। चालीस-पचास साल पहले कुछ डाक्टर रिक्शा प्रैक्टिस किया करते थे। आश्चर्य ये कि ये डाक्टर अपने दौर के अनुभवी और प्रख्यात डाक्टर हुआ करते थे। बसों, ट्रेनों से आने वाले मरीजों को ये रिक्शा वाले इन डाक्टरों के पास पहुंचाया करते थे और बदले में इन्हें कमीशन दिया जाता था। इस दौर के बाद अस्पतालों में सिंक टेस्ट की होड़ मची। मरीज की यूरिन और स्टूल टेस्ट के लिए सैंपल तो लिया जाता था लेकिन सैंपल को सिंक में फिंकवाकर मनमाफिक रिपोर्ट बनवाकर पैसा वसूला जाता था।

 कुछ डाक्टरों ने तो अपने एजेंटों को रिक्शा तक खरीद कर दिए थे। ये रिक्शे वाले बिजली घर बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर आने वाले आम यात्रियों को नहीं बैठाते थे। इनकी नजर इतनी तेज थी कि पहचान जाते थे कि इलाज कराने आए हैं। ऐसे लोगों को अपने डाक्टरों के पास ले जाते थे। इन्हें डाक्टर के यहां से कमीशन मिला करता था। इन रिक्शा वालों को दिए गए कमीशन की भरपाई और अपनी कमाई के लिए डाक्टरों ने एक और रास्ता निकाला था। यूरिन और स्टूल टेस्ट से कई ऐसी बीमारियों को डायग्नोस किया जा सकता है जो आम लक्षणों में भी पकड़ में नहीं आतीं। मरीजों के यूरिन और स्टूल टेस्ट के लिए सैंपल तो लिए जाते थे लेकिन, इन्हें सिंक में फिंकवा दिया जाता और डाक्टर के कहे अनुसार रिपोर्ट बनाई जाती। गंभीर बीमारी बताकर महंगी दवाओं के जरिए कमाई की जाती थी। तब डाक्टरों के बीच में ये तरीका सिंक टेस्ट के रूप में चर्चित रहा था।

अब एंबुलेंस गैंग का बोलबाला है। दूसरे जिलों के मरीज कहीं हाथ से न निकल जाए, इसके लिए पैसे के भूखे डाक्टरों और अस्पताल संचालकों ने एंबुलेंसों से अनुबंध किया है। एंबुलेंस आसपास के शहरों से मरीज लाती हैं। इन मरीजों को एंबुलेंस के हवाले करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं गांव-गांव बैठे झोला छाप। ये झोला छाप आगरा के कई अस्पतालों के बड़े एजेंट बन चुके हैं। इनके यहां आने वाले भोले-भाले मरीज की जिंदगी से पहले अपने अनाडीपन से खेलते हैं और फिर हालत बिगड़ने पर आगरा के अनुबंधित अस्पताल का रास्ता दिखा देते हैं। मरीज के साथ ऐसी हमदर्दी दिखाते हैं जैसे कि सबसे सगे हों। लेकिन, इस हमदर्दी का भी पैसा अस्पताल में इलाज के नाम पर वसूली जाने वाली रकम से वसूल लेते हैं। मरीज को एंबुलेंस चालक सीधे इसी खास अस्पताल में ले आते हैं। यहां अस्पताल में मरीज को सीधे आइसीयू में भर्ती कर दिया जाता है और इसके बाद शुरू हो जाता है इलाज के नाम पर वसूली का खेल। जानकार तो कहते हैं कि जिस अस्पताल के बाहर जितनी ज्यादा एंबुलेंस, समझ लो कि मरीज के साथ उतनी ज्यादा वसूली का अड्डा। आगरा शहर में खंदारी के पास और संजय प्लेस स्थित अस्पतालों में एंबुलेंसों की कतारें खडृ़ी देखी जाती हैं।

बेड के आधार पर भी डाक्टर लेते हैं कमीशन

 शहर के अस्पतालों में एक ट्रेंड और चल रहा है। फिजिशयन हो या सर्जन, क्लीनिक पर परामर्श और सर्जरी का तो पैसा लेते ही हैं, अगर मरीज अस्पताल में भर्ती है विजिट फीस तीमारदार से वसूलते ही हैं। अस्पताल संचालक से बेड के आधार पर भी अपना कमीशन लेते हैं। यानी, उनका मरीज जितने दिन भर्ती रहेगा, उतने दिनों के अस्पताल की बिलिंग में से उन्हें कमीशन चाहिए। अस्पताल की बिलिंग में कोई हेराफेरी न हो जाए, इसके लिए डाक्टर के आदमी अपने हर मरीज का हिसाब-किताब अलग से रखते हैं।

dadoze.com में अगली स्टोरी में पढ़िए अस्पतालों की कमाई के एक और जरिए का सनसनीखेज खुलासा

अस्पताल की आय का प्रमुख जरिया पैथोलॉजी जांच और फार्मेसी होता है। अस्पताल में खुली फार्मेसी में दवाओं की कीमत से सैकडृों गुना कीमत मरीज से वसूली जाती है, जांच के नाम पर मोटा बिल बनाया जाता है। इस बारे में dadoze.com अपनी अगली स्टोरी में सनसनीखेज खुलासा करेगा।

मेरी बात मैनपुरी के एक छोटे से गांव से आकर आगरा महानगर में एक कदम रखने का प्रयास किया। एक अनजान युवक को अपना ठौर-ठिकाना बनाने की चुनौती थी। दैनिक जागरण जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार समूह ने सेवा करने का सुअवसर प्रदान किया। 9 जुलाई 2025 को दैनिक जागरण समाचार…

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